Saturday, 3 June 2017

महाराणा प्रताप से जुड़े अदभुत रहस्य







मेवाड़ के राजा और इतिहास के महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म 7 जून 1540 को उदयपुर के संस्थापक उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के घर हुआ था प्रताप ऐसे योद्धा थे जो कभी मुगलों के आगे नहीं झुके उनका संघर्ष इतिहास में अमर है लेकिन महाराणा प्रताप से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य हैं जिनके बारे में शायद आप भी नहीं जानते होंगे हेलो दोस्तों मैं हूं शरद और आप देख रहे हैं इंडियन मिस्ट्रीज आज आपको परिचित करवाते हैं महाराणा प्रताप से जुड़ी कुछ रोचक और अनसुनी बातों से महाराणा प्रताप का भाला 80 किलो का था और उनकी छाती का कवच 71 किलो का था उनका भारत कवच दाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था या आज भी मेवाड़ राजघराने के म्यूजियम में सुरक्षित है महाराणा प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे गुफा आज भी मौजूद है हल्दीघाटी युद्ध के समय इसी गुफा में प्रताप ने हथियार छुपाए थे यहां एक मंदिर भी मौजूद है हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने बहलोल कहां पर ऐसा वार किया किस चीज से घोड़े तक के दो टुकड़े हो गए थे महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक जब दौड़ता था तो उसके पेड़ जमीन पर पड़ते दिखाई नहीं देते थे हल्दीघाटी युद्ध में उस ने मान सिंह के हाथी के सिर पर उछल कर के रख दिया था जब महाराणा प्रताप घायल हुए तो वह 26 फीट लंबी ना ले तब को लांग गया था हल्दीघाटी का युद्ध इतना विनाशकारी रहा कि अकबर इसका ख्वाब देख जाग जाया करता था 30 वर्षों तक लगातार प्रयास के बावजूद अकबर प्रताप को बंदी ना बना सका वह प्रताप की बहादुरी का कायल था यह भी कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर की आंखें नम हो गई थी महाराणा प्रताप ने अपने वंशजों को वचन दिया था कि जब तक वह चित्तौड़ वापस हासिल नहीं कर लेते तब तक वह वॉल पर सोएंगे और पेड़ के पत्ते खाएंगे आखिर महाराणा प्रताप को चित्तौड़ वापसी नहीं मिली उनके वज़न का मान रखते हुए आज भी कई राजपूत अपनी खाने की प्लेट के नीचे एक पत्ता रखते हैं और बिस्तर के नीचे सूखी घास का तिनका रखते हैं महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हल्दीघाटी का महा युद्ध 1576 ईस्वी में लड़ा गया इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में सिर्फ 20000 सैनिक तथा अकबर की सेना में 85000 सैनिक थे अकबर की विशाल सेना और संसाधनों की ताकत के बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और मातृभूमि के सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे हल्दीघाटी का युद्ध इतना भयंकर था की युद्ध के 300 वर्षों बाद आज भी वहां पर तलवारे दिखाई देती है I

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